भारत ने ग़ाज़ा युद्धविराम प्रस्ताव पर मतदान से बनाई दूरी, 149 देशों ने किया समर्थन

संयुक्त राष्ट्र महासभा में ग़ाज़ा में तत्काल युद्धविराम की मांग वाले प्रस्ताव पर 149 देशों ने समर्थन दिया, जबकि भारत ने मतदान में भाग नहीं लिया। भारत ने कहा कि वह मानवीय संकट को लेकर चिंतित है, लेकिन प्रस्ताव में आतंकवाद की स्पष्ट निंदा नहीं होने के कारण उसने दूरी बनाई। कांग्रेस ने सरकार के इस रुख की आलोचना करते हुए इसे "नैतिक मूल्यों से विचलन" बताया।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में शुक्रवार को ग़ाज़ा में तत्काल और बिना शर्त युद्धविराम की मांग करने वाले एक प्रस्ताव पर मतदान हुआ। इस प्रस्ताव को जहां 149 देशों का समर्थन मिला, वहीं भारत उन 19 देशों में शामिल रहा जिन्होंने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। 12 देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया।

यूएन महासभा में पारित यह प्रस्ताव ग़ाज़ा पट्टी में बढ़ते मानवीय संकट को देखते हुए लाया गया था, जिसमें संघर्ष विराम, बंधकों की रिहाई और मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने की मांग की गई थी।

भारत का पक्ष

भारत ने प्रस्ताव पर मतदान से दूरी बनाने के फैसले को अपने “संतुलित और सैद्धांतिक रुख” का हिस्सा बताया। भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने कहा कि देश ग़ाज़ा में बिगड़ती मानवीय स्थिति को लेकर बेहद चिंतित है, लेकिन प्रस्ताव में आतंकवाद की स्पष्ट निंदा नहीं की गई, जिस कारण भारत ने मतदान से परहेज़ किया।

“हम सभी निर्दोष नागरिकों की जान की रक्षा चाहते हैं। साथ ही हम यह भी मानते हैं कि इस संकट का समाधान केवल राजनीतिक और कूटनीतिक माध्यमों से संभव है,” भारत की ओर से कहा गया।

विपक्ष की आलोचना

भारत के इस रुख पर विपक्षी दल कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे “शर्मनाक” करार देते हुए कहा कि यह भारत की नैतिक परंपरा के खिलाफ है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार “इज़राइल द्वारा एक पूरे समुदाय के सफाए” पर चुप्पी साध रही है।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

यह प्रस्ताव उस समय आया है जब ग़ाज़ा में इज़रायली हमलों से हजारों नागरिक मारे जा चुके हैं और लाखों विस्थापित हुए हैं। अमेरिका और इज़राइल ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि अधिकांश देशों ने इसका समर्थन किया।

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