एक समय था जब इजरायल और ईरान के बीच घनिष्ठ कूटनीतिक, व्यापारिक और खुफिया सहयोग था, लेकिन आज वही दो देश एक-दूसरे के खून के प्यासे दुश्मन बन चुके हैं। दोनों के बीच की यह दूरी अचानक नहीं आई, बल्कि यह दशकों की राजनीतिक और वैचारिक उथल-पुथल का परिणाम है।
1948 में जब इजरायल की स्थापना हुई थी, तब ईरान (जो उस समय एक राजशाही शासन था) ने उसे चुपचाप समर्थन देना शुरू किया। 1950 और 1979 के बीच ईरान इजरायल को तेल की आपूर्ति करता रहा, वहीं इजरायल ने ईरान को कृषि तकनीक, सैन्य उपकरण और खुफिया सहयोग प्रदान किया। माना जाता है कि इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद और ईरानी एजेंसी सवाक के बीच बेहद करीबी तालमेल था।
लेकिन 1979 की इस्लामी क्रांति ने इस समीकरण को पूरी तरह बदल दिया। ईरान में अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में शाह का तख्तापलट हुआ और एक इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई, जिसने इजरायल को “शैतान का राज्य” करार दिया। इसके तुरंत बाद ईरान ने इजरायल के साथ अपने सभी कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए और तेहरान स्थित इजरायली दूतावास को फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) को सौंप दिया।
इसके बाद से ईरान और इजरायल के बीच लगातार तनाव बढ़ता गया। ईरान ने लेबनानी सशस्त्र संगठन हिज़्बुल्लाह और गाजा स्थित हमास जैसे संगठनों को समर्थन देना शुरू किया, जो इजरायल के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष कर रहे हैं। इजरायल ने इसे अपनी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा माना और कई बार ईरानी ठिकानों पर हवाई हमले भी किए हैं, खासतौर पर सीरिया और इराक में।
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कई बार सार्वजनिक रूप से यह कह चुके हैं कि “ईरान को परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोका जाना चाहिए, चाहे इसके लिए कोई भी कदम क्यों न उठाना पड़े।” दूसरी ओर, ईरान ने बार-बार कहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है, लेकिन साथ ही इजरायल के खिलाफ अपने रुख को कभी नरम नहीं किया।
इस साल की शुरुआत में भी जब इजरायल ने दमिश्क में ईरानी सैन्य अधिकारियों को निशाना बनाया, तो जवाब में ईरान ने इजरायल पर सीधा ड्रोन और मिसाइल हमला किया। यद्यपि ज्यादातर हमले इजरायल के आयरन डोम डिफेंस सिस्टम ने नाकाम कर दिए, लेकिन यह घटना दर्शाती है कि दोनों देशों के बीच अब युद्ध की आशंका केवल सैद्धांतिक नहीं रही।
विश्लेषकों का मानना है कि जब तक दोनों देशों के वैचारिक नेतृत्व — एक ओर इजरायली राष्ट्रवाद और दूसरी ओर ईरानी इस्लामवाद — में कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं होता, तब तक इस टकराव का कोई त्वरित समाधान नहीं दिखता।