भारत का नाम ‘भारत’ कैसे पड़ा, इसका इतिहास बहुत ही रोचक और गहराई से भारतीय संस्कृति, परंपराओं और ग्रंथों से जुड़ा हुआ है। यह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता, गौरव और विरासत का प्रतीक है। आइए इसका इतिहास विस्तार से समझते हैं।
1. महाभारत और राजा भरत से जुड़ा नाम
भारत नाम की सबसे प्रमुख व्याख्या महाभारत कालीन राजा भरत से जुड़ी है:
- राजा भरत प्राचीन भारत के एक चक्रवर्ती सम्राट थे, जिनका वर्णन महाभारत और पुराणों में मिलता है।
- वे ऋषभदेव के पुत्र थे (जिन्हें जैन धर्म में प्रथम तीर्थंकर के रूप में भी जाना जाता है)।
- राजा भरत ने अपनी वीरता, न्यायप्रियता और धर्मपरायण शासन के कारण पूरे देश को एकसूत्र में बांधा।
- इसी कारण उनके नाम पर इस भू-भाग को “भारतवर्ष” कहा गया, जिसका अर्थ है – “भरत का देश”।
2. वेदों और पुराणों में ‘भारतवर्ष’
- भारत का उल्लेख वेदों, विशेषकर विष्णु पुराण, भागवत पुराण, और महाभारत जैसे ग्रंथों में “भारतवर्ष” के रूप में मिलता है।
- विष्णु पुराण में कहा गया है: “उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥” अनुवाद:
समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो भूमि है, उसे भारत कहते हैं, और वहां रहने वालों को भारती संतान कहा जाता है।
3. संविधान में ‘भारत’ और ‘इंडिया’
- भारत के संविधान की प्रस्तावना (Preamble) में स्पष्ट रूप से लिखा है: “भारत अर्थात इंडिया एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है…”
- यहां ‘भारत’ को भारत की मूल संस्कृति का प्रतीक माना गया है, जबकि ‘इंडिया’ अंग्रेज़ों द्वारा दिए गए नाम ‘इंडस’ नदी (सिंधु) से निकला हुआ है।
4. ‘इंडिया’ और ‘भारत’ में अंतर
- इंडिया शब्द यूनानी और अंग्रेज़ी प्रभाव से आया, जिसमें सिंधु नदी को इंडस कहा गया और वहाँ के लोगों को “इंडियन”।
- जबकि ‘भारत’ शब्द पूरी तरह देशी, संस्कृतिक, और धार्मिक पहचान से जुड़ा है।
5. भारतवर्ष का सांस्कृतिक महत्व
- ‘भारतवर्ष’ केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं थी, बल्कि यह एक सांस्कृतिक अवधारणा थी जो धर्म, कला, भाषा, और ज्ञान के आदान-प्रदान से जुड़ी थी।
- यह नाम एकता और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बन चुका है।