ग्रामीण और कस्बाई भारत में बढ़ी लोन लेने की रुचि, शहरी क्षेत्रों में गिरावट

मार्च 2025 की तिमाही में जारी ट्रांसयूनियन सिबिल की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ऋण मांग का रुझान बदल रहा है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लोन लेने वालों की संख्या बढ़ रही है, जबकि मेट्रो और शहरी क्षेत्रों में यह रफ्तार धीमी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों की हिस्सेदारी 22% और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की 30% हो गई है, जबकि मेट्रो क्षेत्रों में यह घटकर 29% रह गई।

देश में ऋण (लोन) लेने की प्रवृत्ति में नया बदलाव देखने को मिल रहा है। ट्रांसयूनियन सिबिल की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लोगों की क्रेडिट (लोन) मांग में लगातार इज़ाफा हो रहा है, जबकि मेट्रो और अन्य शहरी इलाकों में यह गति धीमी पड़ गई है। रिपोर्ट में मार्च 2025 की तिमाही के आंकड़ों के आधार पर यह विश्लेषण किया गया है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें:

ग्रामिण इलाकों की हिस्सेदारी बढ़ी: मार्च 2025 की तिमाही में ग्रामीण क्षेत्रों से क्रेडिट पूछताछ (इन्क्वायरी) की हिस्सेदारी 22% रही, जो 2023 और 2024 में 20% थी।

अर्ध-शहरी क्षेत्रों में भी इज़ाफा: इन इलाकों में क्रेडिट मांग बढ़कर 30% हो गई, जबकि 2023 में यह 28% और 2024 में 29% थी। मेट्रो क्षेत्रों में गिरावट: मेट्रो शहरों में यह आंकड़ा 2023 में 32% से घटकर 2025 में 29% पर आ गया है। शहरी क्षेत्रों में स्थिरता: छोटे शहरों और नगरों की हिस्सेदारी लगभग 19–20% पर स्थिर बनी हुई है।

लोन की प्रकृति में भी बदलाव:

होम लोन और दोपहिया वाहन ऋण जैसे उच्च मूल्य वाले क्रेडिट उत्पादों की ओर रुझान बढ़ा है, जिसकी वजह से समग्र क्रेडिट मांग में कुछ गिरावट देखने को मिली।

उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद के लिए लिए जाने वाले लोन जैसे पर्सनल लोन, ड्यूरेबल्स फाइनेंसिंग और क्रेडिट कार्ड उपयोग में सितंबर 2024 के बाद से सुधार के संकेत मिल रहे हैं।

युवा वर्ग की हिस्सेदारी घटी:

26–35 वर्ष के आयु वर्ग की क्रेडिट पूछताछ में गिरावट आई है। मार्च 2023 और 2024 में इस वर्ग की हिस्सेदारी 41% थी, जो 2025 में घटकर 39% रह गई। 25 वर्ष से कम आयु वाले उपभोक्ताओं की हिस्सेदारी स्थिर रही (17–18%)। 36–45 वर्ष के आयु वर्ग में पूछताछ बढ़कर 25% हो गई है, जबकि पहले यह 24% थी। 45 वर्ष से अधिक आयु वाले समूहों में कोई विशेष बदलाव नहीं देखा गया है।

क्या दर्शाता है यह बदलाव?

यह रिपोर्ट साफ तौर पर दर्शाती है कि देश के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में वित्तीय जागरूकता और समावेशन की गति तेज हो रही है। इन क्षेत्रों में लोन की बढ़ती मांग यह भी संकेत देती है कि आर्थिक गतिविधियां और व्यक्तिगत निवेश अब केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं रह गए हैं।

Share This Article